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________________ १६० श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Bhri Devakumar Jain Oriental Library, Juin Siddhant Bhavan, Arrah Opening Closing t ado Opening! Closing : Colophon : ४८० प्रथश्लोका । देखे - जि० र० को, पृ ३५५ । दि. जिग्रर, पृ Catg. of Skt. & Pkt. Ms, P. 691 ४४६. विश्वनत्वप्रकाश (१ अध्याय ) विश्वतत्व प्रकाशाय अनाञ्चनतरूपाय परमानदमूर्त्तये । नमस्त परमात्मने ॥ चार्वाकवेदातिकयोगभाट्टप्राभाकरार्षक्षणिकोक्ततत्वम् । यथोक्तयुक्त्या वितय समर्थ्य समापितोऽय प्रथमोधिकार || Colophon • इति परवादिगिरिसुरेश्वर श्री भावसेनत्रविद्यदेवविरचिते मोक्षशास्त्र विकाशे अगेषपरमततत्वविचारे प्रथम परिच्छेद समाप्त । शुभसवत् १६८८ फाल्गुण शुक्ला १० गुरुवासर । विशेष – प्रथम परिच्छेद के अतिरिक्त एक पत्र मे प्रमाण के विषमरे थोडा सा लिखा है, जिसे विभिन्न मतो मे स्वीकृत प्रमाण सख्या दी गई है । जिनरत्नकोष मे भी पृष्ठ ३६० पर इसका एकही अधिकार होने की सूचना है । देखे - दि० जि० ग्र० २०, पृ० ३६० Catg of Skt & Pkt. Ms, P. 692. ४४७. विवाद मत खण्डन कि जापहोमनिय तीर्थस्नानश्व यदि स्वादति माशानि सर्वमेव मद्वयमद्वय चैव व त्रिय व चतुष्टय | अनया कुस्कलिंगानि पुराणानष्टादशानि च ॥ इति विवादमत खटन सम्पूर्णम् । भारत । निर्थकम् ॥
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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