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________________ १२६ Catalogue of Sanskrit, Prakrt, Apabhramsha & Hindi Manuscripts (Dharma, Darsana, Acara ) ३५ ७. समावितन्त्र वचनिका Opening इहाँ स स्कृत मे प्रवीग नाही अर अर्थ सीखने के रोचक असे केत्तेक्सुबुद्धी मूलग्नथ का प्रयोजन । Closing ! औरनितू भी मेरी सोधिवे निमित्त प्रार्थना है सो देखि सोधि लीजियो। Colophon ' इति समाधितत्र वचनिका माणिकचद कृत स पूर्णम् । स वत् १९३८ का मिती माघ शुक्ल पडिवा शुक्रवार । ३५८. समाधिशतक Opening : येनात्मावुद्धात्मव परत्वेनैवचापर ।। अक्षयानतबोधाय तस्मै सिद्धात्मने नम ॥१॥ Closing : ज्योतिर्मय सुखमुपैति परात्मतिष्ट ।। स्तन्मार्गमेतीधगम्यसमाधितत्रम् ।। १०५ ॥ Colophon इति श्री समाधिशतक समाप्तम् ॥ शुभमस्तु सिद्धिरस्तु। स वत् १८१४ । आश्विनकृष्ण ७ गुरुवासरे पुस्तकदमिद स पूर्णम् ।। देखे-जि० र० को०, पृ०४२१ ३५९. सम्मेदशिखर महात्म्य Opening : पच परमगुरु को नमो दोकर सीस नवाय । श्रीजिन भापित भारती, ताको लागो पाय ॥ Closing : रेवा सहर मनोग, वस श्रावग भव्य सव । आदित्य ऐश्वर्य योग, तृतीय पहर पूरन भयौ ।। Colophon इति श्री स मेदशिखरमहात्मे लोहाचार्यानुसारेण भट्टारक श्री जगत्कीर्ति छप्पय लालचद विरचिते सूवरकूटवर्णनो नाम एकविंशतिम सर्गः ॥२१॥ समाप्त भया। इति श्री सवेदशिखर महात्म जी सपूर्णम् । लिवित गुचद अगरवाले जैनी कानतीलगोत्रस्य पुत्र
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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