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________________ १२७ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsha & Hindi Manuscripts (Dharma, Darsana, Acāra) ३५०. समयसार नाटक Opening : देखे, क० ३४२ । Closing ; देखे क्र० ३४२ । Colophon; इति श्री समयसार नाटक सिद्धान्त समाप्तः। सवत १७२५ असु १० म.। ३५१. समयसार नाटक Opening : • दलन नरकपद क्षयकरन, अतट भव जलतरन । घरसवल मदन वनहर दहन, जय जय परम अभय करन ।। Closing : देखे क्र. ३४२ । Colophon इति त्री परमागम समसार नाटक नाम सिद्धान्त बनारसी दासकृतम् । लिखित नित्यानदब्राह्मणेन लिखायत श्रावग जीवसुखराम उभयोमगल ददातु। सवत् १८७६ वर्षे भाद्रपद शुक्ला ५ बुधवासरे समाप्ता. । शुभ भूयात् । ३५२. सम्यक कौमुदी Opening : श्री वर्द्धमानस्य जिनदेव जगद्गुरुम् । वक्षेह कौमुदी नृणा सम्यक्तगुण हेतवे ॥ १॥ Closing! अर्हद्दामेन राजा हृष्टस्तस्य पुण्य कृता प्रशसनश्च ।। देखें-(१) दि० जि०म० २०, पृ०७१ । (२) जि० र० को०, पृ० ४२४ । (३) प्र जै सा , २३६ । (४) ० सू., पृ० १३२, १३३ । (५) रा० सू० II, पृ० ८१ । ३५३. समाधिमरण यश अपने इष्टदेव को नमस्कार करि अतिम समाधिमरण ताका सरूप वरनन करिए है। सो हे भव्य तुम सुणौ। सोही अब लक्षण वरणन करिह। मो समाधिनाम नि कषाय का है शाति प्रणामौ (परिणामो) का है। Opening :
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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