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________________ १२३ Cata'ogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsha & Hindi Manuscripts (Dharma, Darsana, Acara) ३३६. सज्जनचित्त बल्लभ Opening: Closing . यहा प्रथम हो टीकाकार अपने इष्टदेवगुरुशास्त्रदेव को नम स्काररूप मगलाचरण कर है। हरगुलाल कहै, जोली जगजालदहै । और शिवनाही लहै तोली तू ही स्वामी हमार है । इति सज्जनचित्तवल्लभ नाम ग्रन्थ सपूर्णम् सवत् १९५३ । Colophon . ३३७• संबोध पंचास्तिका Opening Closing : णमिऊण अरूहचरण वदे युणु सिद्ध तिहुथणे सार । आयरियउज्झायाण साहू वदामि तिविहेण ।। सावणमासम्मि कया गाहावधेण विरइय सुणह। कहिय समुच्चय छपयडिज्जत च सुहवोह ॥५०॥ इति सवोध पचास्तिका समाप्तम् । देखे,--जि. र० को०, पृ० ४२२ । Catg. of Skt & Pkt. Me., P 704. Colophon ३३८. संबोध पंचारित्तका सटीक Opening: Closing Colophn: देखे-क्र० ३३७ । अस्या सवोधपचासिकाया बहवो अर्थों भवति परन्तु मया सपेक्षार्थे कथिताः च पुन. सुख स्वात्मोत्पन्नसुख बोधि प्राप्त्यर्थ मया कृता । इति सवोधपचासिका धर्माविकाशिकशास्त्र समाप्तम् । श्री गौतमस्वामीविरचित शास्त्र समाप्तम् । सम्वत् १७६३ वर्षे शाके १६५८ प्रवर्तमाने कार्तिकमासे कृष्णपक्षे पष्ठी तिथौ। शुभमिती पौपकृष्णा ७ मंगलवार श्रीवीर सवत् २४६२ वि० स० १९९२ के दिन यह प्रतिलिपि लिखकर तैयार हुई। ह. रोशनलाल जैन।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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