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________________ १०६ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah २८४. मरणकडिका Opening : पणमतिसुरासुरमनुलियरयणव्वकिरणकतिवियरयम् ।। वीरजिणयजयलणमिनुगमणेमिरिद्गातम् ।।१।। Closing : दयदअरकराइ गुणह भावहलोराहिं हरहणि जीवइ सोणरइले समेणमरण च सुणण ।। १॥ Colophon: इति मरनकाड सपूर्ण मिती कात्यागवदी ५ बुधवासरे सन्तु १८८७ समनलाल । २८५. मिथ्यात्व खण्डन Opening : प्रथम सुमरि अरिहत को, सिद्धन को धरि ध्यान । सरस्वती शीश नवाइके, वदी गुरु जत ध्यान ।। Closing : महिमा श्री जिनधर्म की, सुनियत अगम अनत । जा प्रसादतै होन नर मुक्ति वधू के कत ॥ ग्रन्थ अनूपम रच्यो यह, दै ग्रन्थनिकी साखि । मूरख हाथि न देहु भवि, अधिक जतन सौ राखि ॥ Colophon : इति मिथ्यात्व खडन नाटक सम्पूर्ण। सवत् १९३५ मिती ज्येष्ठ कृष्ण नवमी शनिवारे। २८६. मिथ्यात्व खण्डन Opening : देखे, ऋ० २८५ । Closing : देखे, ऋ० २८५। Colophon: इति मिथ्यात्व खंडन नाटक सम्पूर्ण। मिती श्रावण कृष्ण ४ वुधवार सवत् १८७१ लिखी फतेपुर मध्ये ।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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