SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 289
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Catalogue of Sanskrit, Praktit, Apabhramsha & Hindi Manuscripts ( Dharma, Darsana, ācāra ) Opening Closing : Colophon : Opening: Closing : Colophon : Opening Closing : २३४. धर्मरसायन Colophon. इति श्री धम्मरसायण सपूर्णम् । इति श्री धर्मरसायन ग्रन्थ की भाई देवीदासजी खडेलवाल गोधा गोती जंनगर वासी ने पटना मे भाषा की। मिति आसिन सुदी १४ । A वाले कृत f ' मऊण देवदेव धरणिदरद इद थुयचलण । जाण जस्स अणत लोयालोय पयासेइ ||१|| भव्वियाण वोहणत्थ इयधम्मरसायण समासेण । वरपउमणदि मुणिणा रइयजमणियमजुत्तेण ॥ देखे - जि० २० को०, पृ० १६२ । Catg. of Skt. & pkt. Ms. P. 656, २३५. धर्मरसायन देखे, क्र० २३४ ॥ देखे, क्र• २३४ | इतिश्री धम्मरसायण सपूर्णम् । ८६ २३६. धर्मविलास गुण अनतकरि सहित रहित दस आठ दोषकर ॥ विमल ज्योति परगास भास निज आन विषं हर ॥ जग धन्न धन्न सब साधु तुम वकना श्रोता सुखकरौ । धानत है माता सरसुती तुम प्रसाद सब नर तरी ॥ इति श्री धर्म विलाम भाषा महाग्रथ सुकवि द्यानतराय अगरसम्पूर्णः । पुस्तक रिषवदास जी छावडा के डेरै मस्तक परि विराज, ती वाई जैपुर का तेरापंथ के मंदिर की पचायती में ।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy