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________________ ८१ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhram 3ha & Hindi Manuscripts (Dharma, Darsana, Acara) Opening Closing २०७. छहढाला तीनभुवन मे सार, वीतराग विज्ञानता। शिवसरूप शिवकार, नमी त्रियोग सम्हारिक ॥ लघुधी तथा प्रमादत शब्द अर्थ की भूल । सुधी सुधार पढौ सदा ज्यो पावो भवकूल ।। इति श्री छहढाल्यो दौलतरामजी कृत सपूर्णम् । मिती मगसिर सुदी १० वार सोमवार सवत् १९५० । शुभ भूयात् । Colophon Opening . Closing २०८. छियालीस दोषरहित आहारशुद्धि अरिहत सिद्ध चितारिचित, आचारज उवझाय। । साधु सहित वदन करो, मन वच शीश नवाय ।। केवल ज्ञान दोङ उपजाय, पचम गतिमे पहुँच जाय । सुख अनत विलसहि तिहि ठौर, तातै कहै जगत शिरमौर ।। सवत सत्रस पचास ज्येष्ठ सुटी पचमी परकाश । भैया वदत मन हुल्लास जै जै मुक्ति पथ सुखवास ॥ इति छियालीस दोष रहित आहारशुद्धि सम्पूर्णम् । २०६. दर्शनसार Colophon Opening : पमिय वीरजिणिंद सुरसेणि'णमेसिये विमलणाणे । वोच्छ दसणसार जह कहिय पुव्वसूरीहिं ।। Closing : रूसतूरू सउलोउच्च अरकतयस्य जीवस्स। '' किं जुअभण्णसा जीवज्जियव्वाणरिदेण ॥ Colophon: इति दर्शनसार समाप्तम् विराटनगरमध्ये मल्लिनाथ चैत्यालये इद पुस्तक लिखापित श्रावणवदी चतुर्दश्या बुधवासरे सवत् १८८६ का । देखे-जि० र० को०, पृ० १६७ । Catg. of Skt & Pkt Ms., P. 652. २१०. दर्शनसारंवचनिका Opening : देवेन्द्रादिक पूज्य जिन ताके क्रम शिरनाय । भूतभावि जिनवर्तते भावभक्ति उरल्याय ।। 3
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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