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________________ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jazz Oriental Library, Jain S.ddhant Bhavan, Arrab Closing : 'अथवा जिनसेनाचार्य का शिष्य जो गुणभद्र ताका भाष्या है। ए दोऊ अर्थ प्रमाण है। Colophon : इति श्री आस्मानुशासनमूलभापाग्रथ सपूर्णम् । सवत् १८५८ मिती मार्गशिर वदी १४ । १७५. आवश्यक विधि मूत्र Opening : नमो अरहताण, नमो सिद्धाण, नमो आयरियाण, नमो उवज्झायाण, नमो लोए सव्वसाहूण ॥ Closing १ सवित्त, २ दव, ३. विगई, ४. वाहणह, ५. वक्ष, ६ कुसुमेसु, ७ वाहण, ८. सयण, ९ विलेपण, १० अवत, ११ दिसि, १२. न्हाण, १३ भात्तसु, १४. नीम। Colophon : इति आवश्यक विधिसूत्र। सवत् १६४२ वर्षे कातग (कार्तिक) मासे शुक्लपक्षे पचमी तिथी रविवारे लिखित कूषसतगुणेन । शुभ भवतु । Opening Closing' १७६. बनारसीविलास ताल अरथविचार ।। "ध्यानधरै विनती करें। वनारससि वदाति · ॥ अनुपलब्ध। Colopnon: १७७. भगवती आराधना Opening : सिद्ध जयपसिद्ध चउन्विाराहणा फल पतं । वदित्ता अरिहते वुन्छ आराहणा कमसो ।। Closing : हरो जगत के दुख' सकल करो सदा सुखकद । लसो लोक, में भगवती आराधना अमद । Colophone इति श्री शिवाचार्य विरचित भगवती आराधनानाम ग्रथ की देशभापामय वचनिका समाप्त.। मिती माघ सुदी १२ सवत् १९६१ । श्री जिनाय नमः।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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