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________________ ६३ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsha & Hindi Manuscripts ( Dharma, Darsana, Acāra) धर्म, दर्शन, आचार १५६. अध्यात्मकल्पद्रुम Opening नम प्रवचनाय । अथाय श्रीमान् शातनामरसाधिराज सकलागमादिसुशास्त्रास्मरिवायनिषद्भूतसुधारसाधमाऐहिकामुप्मिकामनतानदोहसाधनतया पारमार्थिकोपादश्यतयमवरससारभूत ज्ञाताशातरसभावनात्माऽध्यात्मकल्पद्रुमाभिधान ग्रथातरग्रथननिपुणेन पद्य सदर्षेण भाव्यते । Closing : इममितिमानधीत्यवित्तेरम यतियो विरमत्यय भवादाग । सच नियत मनोरमेतवास्मिन् सह नव वैरिजयश्रियाशिव श्री। Colophone इति नवमश्रीशातरसभावनास्वयो अध्यात्मकल्पद्रुमग्रथोऽय जयअके। श्री मुनिसु दरभूरिभि कृतम् । विशेष-यह अथ करीब वि० म० १८०० से भी कम का ज्ञात होता है। __ देखे, जि. र० को०, पृ० ५। १५७. अध्यात्म बारखडी Opening : खोर तिलक विदी, अग बाप उरमाल । यामै तो प्रभु ना मिले, पेट भराई चाल ।। Closing : ग्यान हीन जानो नही, मनमे उठी नरग । धरम ध्यान के कारन, चेतन रचे सुचग ॥ Colophon : इति अध्यात्म बारखडी समाप्त । १५८. अन्यमतसार Opening : आदिनाथ भगवान की वदना करि ससारके हितके निमित्त जैनमतधर्मकी प्रसशाकरि मुख्यदया धर्म की धारना करना श्रेष्ठ है
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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