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________________ ६१ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsha & Hindi Manuscripts (Purāna Carita, Katha ) माप्तम् । सवत् १८८४ शाके १७४६ ज्येष्ठ शुक्ल पचम्या गुरुवासरे पुस्तकमिद रघुनाथ शर्मा ने लिखि। शुभ भूयात् । १५१. विष्णुकुमार कथा Opening . प्रथमहिं प्रथम जिनेन्द्र चरण चित ल्याईयै । प्रथम महाव्रतधरन सु ताहि मनाईयै ॥ प्रयम महामुनि भेष सुधरण धुरधरौ । प्रथम धरम परकाशन प्रथम तीर्थंकरौ । Closing : मुनि उपसर्ग निवारणी, कथा सुने जो कोइ । करुणा उपजे चित्तमे, दिन दिन मगल होय ॥ Colophon इति श्री विष्णकुमार का वात्सल्यमुनि उपसर्ग निवारणी कथा लाल विनोदी कृत स्वय पठनार्थ सूकरे लिखितम् सम्पूर्णम् । शुभ भवतु । सवत् १९४६ चैतशुक्ल पक्ष चौथ शनिवासरे। लिखत वुणू बाबू की मांजी कलकत्ता मध्ये । इतनी मेरी अरज है, सुनो त्रिभुवन के ईश । तुम विन काऊ और कू , नये न मेरो शीश ।। १५२. व्रतकथाकोश Opening . ज्येषट जिन प्रणम्यादावकलक कलध्वनि । श्री विद्यानदिन ज्येष्टजिनव्रतमयोच्यते ।। Coleing : स्त्री चैषागवशेन मात्रसदृडा नियंढचास्वता ॥ दीर्यायुर्वलभद्रदेवहृदया भूयात्पद सपद ॥२४६।। Colophon . ___ इति भट्टारक श्री मल्लिभूषण भट्टारक गुरुपदेशात्शूरो श्री श्रुतिसागर विरचितापल्लविधानव्रतोपाख्यान कथा समाप्ता । फागुण कृष्णपक्ष समत् १९३७ ॥ ब्राह्मण गगा बकस पुष्करण्य पाराशूर ॥ बनेडामध्ये ॥ सवत् १७१९ का भादवमासे कृष्णपक्षे प्रतिपत्तिथी वुधवासरे अस्य व्रतकथा कोशशास्त्रस्य टीका लिखिता ॥ द्रष्टव्य-जि० र० को०, पृ० ३६८ ।
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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