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________________ ५२ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah १३२. शीलकथा Opening : देखे, ऋ० १२८ । Cloeing : देखे, क्र १३० । Colophon: __इति श्री शीलकथा सम्पूर्ण । मिति वैशाख वदी १ सन् १२७६ साल दसखत दुरगा प्रसाद जैनी जिला आरा । १३३. श्रेणिकचरित्र Opening . तीनलोक तिहुकालमे पूजनीक जिनचद । श्री अरहत महतके, वर्दी पद अरविंद । Closing . मनवचतन यह शास्त्र को, सुनें सरदहै सार । नामशर्मा भोगिक, होत भवोदधिपार ॥ Colophon ___ इति श्री श्रेणिक महाचरित्रे ग्रथ फलितवर्णनो नामएकविश तिमो प्रभाव । इति श्रेणिकचारित्र सम्पूर्णम् । उगणीस सौ वासठ यही, कृष्ण पाच वैसाख । सोम सहारनपुर विषे, सीताराम जुराख ।।१॥ मूलऋक्ष शिवयोग मे लिखकरि पूर्ण विचार । पडित जन पढ़ लीजियो, लिखी बुद्धि अनुसार ।।२।। जैसी प्रति देखी लिखी, तैसी नही महान । निजकर शोधि सभारिक, पडि लीजै बुधवान ।।३।। शुभम् सवत्सर. १९६२ शक. १८२७ वैशाखकृष्ण पचम्या सोमदिने मूलः शिवयोगे सहारनपुरनगरे लिपिकृत प० सीतारामशास्त्री निजकरण । भव्या पठतु शृण्वन्तु, क्षेममार्गानुगामिन । कराग्रेण विदोतूर्ण श्रीमद्गुरुप्रसादत ॥ १३४. श्रेणिकचरित्र Opening . श्री वर्द्ध मानमानद नौमिनानागृणाकरम् । विशुद्धध्यानदीप्ताचिर्तुतकर्मसमुन्चयम् ॥
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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