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________________ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्यावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Jain Siddhant Bhavan, Arrah Closing : श्री मूलसघे वरपुष्कराख्ये गच्छेमुजातो गुण भद्रसूरिः । पट्ट' च तस्येव सुगीमसेनो भट्टारकोभूद्विदुषा शिरोमणि ॥ Colophon : इति श्रीरामपुराणो भट्टारक श्री सोमसेनविरचिते राम स्वामीनो निर्याणवर्णनो नामयत्रिशत्तमोधिकार । ३३ ॥ समाप्तीय रामपुराण ग्रथामथश्लोक ७००० । सप्तसह. स्त्राणि । मिती भादी सुदी ११ रावत् १९८६ तादिन यह पुस्तक लिखकर समाप्त की। द्रष्टव्य-जि० र० को०, पृ० ३३१, २३४ । Catg. of Skt. & Pkt. Ms., Page-687. ११० रोहिणी कथा Opening : Closing . वासुपूज्य जिनराज को, वदू मनवचकाय । ता प्रसाद भाषा करो, सुनो भविक चितलाय ॥ रोहनी व्रत पाल जो कोई, ता घर महामहोत्सव होई। मनवचकाय सुद्ध जो धरै, क्रमतेमुकति वधु सुख वरं ॥५॥ इति रोहणी व्रत कथा सम्पूर्णम् । Colophon : १११ रोटतीज व्रत कथा Opening : Closing : चौवीसो जिन को नमी, श्री गुरुचरण प्रभाव । रोटतीज व्रत की कथा, कहो सहितचित चाव ।। भूल चूक जो कथा मझारा, लै भविजन सब सुजन सवारा। शुभ सवत् उन्नीसपचासा, अषाढ शुक्ल तृतीया मलोमासा ॥ वार शुक्र शशि कथा प्रकाशा, वाचक हृदय हर्ष की आशा। जैन इन्द्र किशोर सुनाई, जय-जय ध्वनि चतुर्दिक छाई ॥ इति सपूर्णम् । शुभ भूयात् । ११२. रोटरीज व्रत कथा देखे, ऋ० १११। देखे, ऋ० १११॥ Colophon : Opening : Closing :
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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