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________________ १ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsha & Hindi Manuscripts' (Purāna Carita, Kathā) Closing : महिम्नामाधारो भुवनविततध्वाततपन । स भूयान्नो वीरो जननजयसपत्तिजनन ॥ Colophon: - इति श्री वर्द्धमानचरित्रे पुराणसारसग्रहे भगवन्निवणिगमन नाम पचम सर्ग समाप्त । प्रतिलिपि जैनसिद्धान्त भवन आरा मे रोशनलाल जैन ने की। शुभमिती फाल्गुन शुक्ला ६ गुरुवार विक्रम संवत् १९६० वीर सवत् २४६० । इति शुभ भवतु । द्रष्टव्य-जि० र० को०, पृ० २५३ । १०२. पूज्यपाद चरित्र Opening : पादपद्मगलिगे चाचुवेनेन्नलकवनु । उपदेशगदु सकलतत्ववनुरे कुप ग्वेन्लव सहरिसि । सुपथव तोरि सुखवनु भव्यगित्तवुपदेशकरिणे रगुवेनु । Closing: सौख्यम कनकगिरिवराधीश्वर पार्श्वनाथ । Colophon: अतु सधि १५ क्का पदनु १९३२ सखिरद वभनूर मूव तोबत्तक्का मगल जयमगल शुभमगल नित्यमगल महा । हृदिनदनेय मधि मुगिदुदु । पूज्यपादचरित्रे सपूर्न मगलमहा । १०३/१. रामयशोरसायन रास Opening : श्री मनसोन्नत स्वाम जी त्रिभुवन त्यारण देव । तीरथकर प्रभु वीसमो सुरनर सारे सेव ।।१।। Closing वरसा सोला केरी सुन्दरी सुन्दर मुयल भाष । स्प अनुपम अधिक बनायो इन्द्र करै अभिलाष ।। सी० ।। रिमझिम रिमझिम घू घर वाजै । Colophoni .. नहीं है। विशेष। यह पाण्डुलिपि गुजराती लिपि मे 'देवचद लालभाई पुन्त कोद्धार फड, सूरत' से 'आनन्दकाव्य महोदधि' के दूसरे भाग मे
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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