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________________ २१ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsha & Hindi Manuscripts (Purana, Carta, Katha ) Colophon: इति श्री जवूस्वामी की कथा सपूर्ण । मिति श्रावणवदी ३ वार, रविवार सन् १८८३ साल। दस्तखत दुरगाप्रसाद जैनी आरे । ५४. जयकुमारचरित्र ( १३ सर्ग ) Closing : श्रीमत त्रिजगन्नाथ वृषभ नृसुराच्चितम् । भवभीतिनि हतार क्दे नित्य शिवाप्तये ॥१॥ Opening सकलकीर्तिकृत पुरदेवज समवलोक्य पुराणमिय कृतिः। जयमुनेगुणपालसुतस्य च बृहदल जिनसेनकृत कृता ॥ १०१॥ Colophon: इति श्री जयाके जयनाम्निपुराणे भट्टारक श्री पद्मनदि गुरु पदे ब्रह्म कामराजविरचिते पडित जीवराजसहाय्या त्रयोदशमः सर्ग । इति श्री जयकुमार चरित्र समाप्त । गुरुप्रसादात सपूर्ण जातम् । सवत् १२४२ मासोत्तममासे आसोजमासे। कृष्णपक्षे १५ सोमवासरे नगरवियानामध्ये पाडे हेमराजेन- लिखितमस्ति । स्वपठनार्थ श्रीरस्तु- कल्याणमस्तु। वाचे पढ़ जे पडितजी ने श्री जिनाय नम म्हाकी जीन बै । आयुर्भवतु श्री। मूलमधे बलात्कारगणे सरस्वती गच्छे कुदकु दाचार्यान्वये नद्याम्नाये श्री भट्टारक विश्वभूषणदेवा तत्पट्ट श्रीभट्टारकेदुश्रीभट्टारक जिनेन्द्रभूषणदेवा तत्पट्ट भट्टारकमहेन्द्रभूषणदेवास्तैरिह स्वस्थाध्यायनार्थ शुभ भूयात् गोपा ? नगरे जयकुमारचरितस्येद पुस्तकम् । __- देखे-जि०र० को०, पृ. १३२ । Catg. of Skt & Pkt. Ma., P 643 Opening | ५५. जिनदत्तचरित्र वचनि का पचपरम गुरुकू प्रणमि पूजो शारदमाय । भाषा जिनदत्त चरित की करू स्वपर हितदाय ।। पन्नालाल सु चौधरी रची वचनिका सार । जिनदत्त के जु चरित्र की निजमति के अनुसार ॥ सम्पूर्णम्' Closing : Colophon:
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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