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________________ श्री जैनसिद्धान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumar Jain Oriental Library, Juin siddhant Bhavan, Arrah चन्द्रप्रभारीधीरस्य काव्य व्याख्यायते मया । विश्वमन्वयरूपेण स्पष्टसस्कृतभाषया ॥२॥ Closing ! इति वीरनन्दिकृतावुदयाङ्क चन्द्रप्रभचरिते महाकाव्ये तद्वया ख्याने च विद्वन्मनोवल्लभाख्ये अष्टादश सर्ग समाप्तः । Colophon ! शक वर्ष १७६१ नेत्रविकारि सवत्सरद पाघ शुद्ध १ . . श्रीमच्चाएकीति पडिताचार्यवर्य स्वामियवर पदिकगल भृगोपमानियाद वेलगुलदीय वर्गदवसिष्टगोत्रद विजय णैयन यी चन्द्रप्रभा काव्यदव्याख्यानद पुस्तक वरदु सपूर्णवायितु भाचद्रार्कपर्यत भद्र शुभ मगलम् । द्रप्टव्य-जि० २० को०, पृ० ११९ । Cat. of Skt & Pkt Ms., Page-640, Cat. of Skt. Ms., P 302. २०. चन्द्रप्रभ पुराण Opening : श्री चन्द्रप्रभु पदकमल, हाय' जोड सिर नाय । प्रणम शारदा मातफुन, गुरु के लागू पाय ॥ Closing : यही उत्तम जगत माही चार सब अघहार । सरन इनही की सुहीरा, लाल भवदध तार ।। हमरै यही मगलचार।। Colophon: इति श्री चद्रप्रभुपुगणे कडकला/मगाम वर्णनो न.म' सत्तरमो अधिकार पूर्णभया । इति श्री चद्रप्रभु पुराण भापा सम्पूर्णम् । मिति जेठवदी १ मवत् १९७८ | शुभ * वत् । २१ चतुविशति जिन भवालि Opening : जयादिब्रह्मा च महावलोभवत्, लालिन्यदेहत्ववज्जघक । आर्यस्तत श्रीधरको विधिस्ततो, च्युतेन्द्र नाभित्वहमिद्र कर्षभे॥ Closing ! देवो विश्वकनदिदेवहरपयो भूनारक केशरी, धर्मातारकमिहदेवकनको द्योन पुगे लातवे । गजाभरिपेणकरइतञ्चत्रीसुगेनदक , म्बर्गे पोषणमेनिजिनवनवीगवनागम्मता ॥ Colophon: निचर वि..िजिन बालि नपूर्णमा
SR No.010506
Book TitleJain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherJain Siddhant Bhavan Aara
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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