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________________ तृतीय भाग (१५३) हम इस युगल की वृद्धी की भावना भाते हैं। २ रा राजा-(क्रोध से ) ऐ शुभमती, तेरी कन्या महा निर्लज्ज है । बड़े बड़े योग्य राजाओं के होते हुवे इसने एक विदेशी के गले में जिसका कोई ठिकाना नहीं, वर माला डाली है। हम इस कन्या को बलात हर कर ले जायेंगे। ३रा राजा-नहीं भापको यह नहीं चाहिये । कन्या ने जिसे अपना पति बना लिया है वही उसका पती है, चाहे वह कैसा भी क्यों न हो। २रा राजा-नहीं हम कभी इस बातको स्वीकार नहीं करे सकते । शुभमती को हमसे युद्ध करना पड़ेगा। शुभमती-(दशरथ से ! हे राजा दशरथ आप रथ में विठाकर केकई को लेजाइये । मैं इससे यहां युद्ध करता हूं। ___ दशरथ-कदापि नहीं । मैं इस दुष्ट को स्वयं मार भगाऊंगा, इसके सारे अभिपायों को धूल में मिलादूंगा। केकई-पिताजी, आप मुझे आज्ञा दीजिये कि मैं पति देव के लिये स्थ लाऊ। शुभमती-जाओ शीघ्रता से रथ लेकर पाओ। तुम युद्ध विद्या में निपुण हो । आज तुम्हारी परीक्षा है। तुम्हें हो स्थका सार्थी बनना पड़ेगा।
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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