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________________ (१३४.) श्री जैन नाटकीय रामायण । - लकड़ी घुमाती हुई चलती है। . औरत-अगर मैं समाकी होती तो चूंडा पकड़ कर घसीटती। वहू-अरी मरी री, हायरी, कोई बचाओ ये मुझ अन्धी को मारे डालते हैं। १ आदमी-(भाकर ) ये क्या हल्ला मचा रखा है ? क्यों भाई तुम इस बेचारी को क्यों मारते हो । लोभीलाल-अजी साहब, ये औरत देख कर भी नहीं चलती। बहू-देखकर चलती तो अन्धी ही क्यों कहाती । आदमी--क्यों भाई तुम कौन हो और तुम्हारी ये दशा किस प्रकार से हुई। लोभीलाल-क्या कहं, एक बार मैं सैकिंड क्लास में बैठा हुआ जा रहा था, मेरे कपड़े मैले देखकर एक अंग्रेजने मुझे उसमें से धक्का दे दिया सो मेरी टांग टूट गई। उसमें सारा रुपया खर्च होगया। आदमी-और तुम्हारा ये लड़का और स्त्री कैसे । अन्धी होगई। लोभीलाल - ये चाट बहुत खाते थे सो इसकी आंखें । खराब होगई । मेरे पास इस समय एक छदाम भी नहीं है।
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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