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________________ ( १३०) श्री जैन नाटकीय रामायण । है एक देव ने बचाया। राजा-पुत्री, अंजना मेने अभी तक तुम्हें नहीं पहचाना था सो क्षमा चाहता हूं। तुम मेरी भानजी हो । मैं हनुरूह द्वीप का राजा प्रतीसूर्य हूं। अंजना--( एक दम उठकर ) हैं, क्या श्राप मेरे मामा हैं ? ( रोती हुई, मामा के पैर पकड़ती है। ) ( मामी उस बच्चे को उठा लेती है) बसन्तमाला-हे मामीजी, आपके साथ में यह ज्योतिषी जी हैं। कृपया इनसे कहिये कि पुत्र के ग्रह बतावें। ज्योतिषी-पुत्री, तुम मुझे यह बताओ कि इसका जन्म किस समय का है। वसन्तमाला-- श्राज अर्ध रात्रीको पुत्रका जन्म हुआ है। ज्योतषी-( पत्रा खोल कर ) सुनिये, “ चैत्र बदी अष्टमी की तिथि का जन्म है। अपणा नक्षत्र है। सूर्य मेष का उच्च स्थानक विषै बैठा है। और चन्द्रमा वृष का है । और मंगल मकर का है । बुध मीन का है । वृहस्पती कर्क का है। सो उच्च है । शुक्र तथा शनिश्चर दोनों मीन के हैं । सूर्य पूर्ण दृष्टि से शनी को देख रहा है । और मंगल दश विश्वा सूर्य को देने है । और ब्रहस्पती पन्द्रह विसा सूर्य को देख है। और सूर्य दश विश्ा ब्रह पती को देखे है । चन्द्रमा को पूर्ण दृष्टि से
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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