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________________ द्वितीय भाग । ( ११७ ) बहू — नहीं ये तो कभी न होगा कि मैं आत्महत्या कर लूं । वीरसिंह की बहू तो कहीं जा, घर २ भीख मांग लेकिन मेरे घर में तेरे लिये जगह नहीं है । बहू -- मच्छी बात है मैं जाती हूं । तुम सुखी रहना । ( चली जाती है ) वी० की ब० - अच्छा हुआ चली गई । खाली में ही सेर भर आटे का खरच पड़ा करता । रात दिन की हाय २ रहा करती । मैंने भी किस होशियारी से निकाली । बाहरी में । 1 ( भाग जाती है ) अंक द्वितिय - दृश्य तीसरा ( पर्दा खुलता है) ( अत्यन्त दुर्बल अवस्था में अंजना बैठी है । पास में बसन्ततिलका सखी भा वैठी है ।) अंजना -- ( रोती हुई ) हाय, आज बाईस वर्ष बीत गये पती के दर्शन नहीं हुवे । माता पिता ने सोच विचार कर मेरे लिये बहुत योग्य वर ढूंढा है। मेरे पती महा निपुण हैं । मेरे पूर्व भत्र के कर्मों से मुझे दुःख मिल रहा है । क्या मैंने किसी के जोड़ में विघ्न डाला था ? जिसका फल मं भोग रही हूं । पती में मेरे कोई दोष नहीं वह तो सर्वथा गुणवान हैं । वसंततिलका - सखी अंजना, तुम स्त्री रत्न हो पती ।
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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