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________________ ( १०२ ) श्री जैन नाटकीय रामायण । अंक प्रथम - दृश्य पांचवा ( ब्रह्मचारी और साधू आते हैं ) ब्र० --- कहिये साधूजी भाप सब तमाशा देख रहे हैं न ? सा -- मैं सब देख रहा हूं और समझ रहा हूं । मेरे आत्मा से अज्ञान का पर्दा हट रहा है । किन्तु एक बात मुझे आपसे और पूछनी है । ब्र० वह क्या सा०-- वह यह कि नारद का जो यहां पर बयान आया, क्या ये वही नारद है जो दुनियां में अपनी नारदी लीला के लिये प्रसिद्ध है ? ब्र० - नहीं, यह वह नारद नहीं है । यह तो नाम से नारद है । सा- तो सच्चा नारद कौन है ? ० -- उसके विषय में गाड़ी बतायेंगे । सा० आपके यहां भर्यिका किसे कहते हैं ? न० जो स्त्री वैराग्य को धारण करके भात्म कल्याण करती हैं। उन्हे भर्यिका कहते हैं । सा०- क्या वह भी नंगी रहती हैं ? ब्र० नहीं वह नंगी नहीं रहतीं । सा० --- किन्तु श्रापतो कहते हैं कि नग्न होने से ही मोक्ष
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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