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________________ (६६) श्री जैन नाटकीय रामायण । की दृष्टी में सुधारक ओर बूढ़ों की दृष्टि में वेवकूफ हूं। बला-तुम जाते जाते क्यों रुक गये ? सुधारक-तुम्हारा दुख सुनने के लिये । अबला-इससे क्या लाभ ? सुधारक-लाम यही कि तुम्हें शान्ति मिले । अबला-तुम मुझे कैसे जानते हो। सुधारक-जिस दिन तुम व्याह कर लाई गई थीं, तभी से मैं तुम्हें जानता हूं। तुम्हारे ब्याह को रोकने का मैंने बहुत प्रयत्न किया था किन्तु मेरी एक न सुनी गई। तुम्हारे ससुर ने कहा कि मैंने यह कार्य सुधार का किया है।' अबला-भाई क्या मैं तुमसे अब कुछ आशा कर सकती हूं। सुधारक-बहन, आप मेरे घर चलें । मैं आपको अपनी धर्म बहन बनाकर रखूगा । जो कुछ मुझसे उपकार बन पड़ेगा वो भी यथा शक्ती करूँगा। अबला-भारत माता ! तुझे धन्य है। आज भी तेरे पुत्र ऐसे परोपकारी हैं । ( सुधारक से ) चलो भाई में तुम्हारे साथ चलती हूँ। ( दोनों जाते हैं।) दृश्य समाप्त..
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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