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________________ (६४) श्री जैन नाटकीय रामायण। यह केवल दो सुराख हैं जो तुम हमें भिखमंगा समझते हो। हम तुम्हारे अत्याचारों के शिकार हैं। समझो न भिखमंगी हूं मैं, मैं आग की पुतली हूं वो । करदे भसम एक आह से, मैं प्रलय की कारी हूंघो । नमूना अत्याचारों का, तुम्हारे सामने हूं मैं । तुम आंखें खोल कर देखो, तुम्हारी कामनी हूं मैं ॥ ' पिता हैं, कौन ? क्या तू सचमुच मेरी पुत्री कामनी है.। बता वेटी इस तेरे भाग्य में मेरा क्या अपराध जो तु मुझे कोसती है। लमुर-और देखो तो कैसी वेशरम है, सुसरे के सामने ऐसे मुंह खोले हुवे पटापट बोल रही है। अबला-अपराध ? मुझसे अपराध पूछते हो? तुम्हीं ने तो मुझे इस अवस्था तक पहुंचाया है। ससुर-अरे कुछ तो शरम कर। अबला-बस, बस, चुप रह, ओ लोभ के पुतले, अन्याय के बाप । बता मैं तुझसे क्या शरम करूं। माता - पिता से शरम .करी तो मेरी यह अवस्था हुई । तुझसे शरम करी तो मेरा धर्म नष्ट हुआ। पिता-बेटी, बता, मैंने तेरे लिये क्या नहीं किया । मैंने
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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