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________________ जम्बूस्वामी चरित्र अठारह वर्ष एक क्षणके समान बीत गए थे, तब माघ सुदी सप्तमीके दिन सौधर्मस्वामी विपुकाचल पर्वतसे निर्वाण प्राप्त हुए । तब सौधर्ममामीशा मात्मा अनंत सुखके समुद्र में मम होगया । वे अनंत बल, अनंत दर्शन, अनंत ज्ञानके धारी निरंतर शोभने लगे। अपने कल्याण के लिये मैं उनको नमस्कार करता हूं। जम्बूखामीको केवलज्ञान । उसी दिन जब भाषा पहर दिन बाकी था तब श्री जंबूस्वामी मुनिराजको केवलज्ञान उत्पन्न होगया। पहले उन्होंने मोह-शत्रुका क्षय किया। फिर ज्ञानावरण, दर्शनावरण व अंतराय कर्मका क्षय कर लिया। वे अनन्त चतुष्टयके धारी मरहंत होगए । पद्मासनसे विराजित थे, तब ही केवलज्ञान लाभकी पूजा करनेके लिये देव-गण अपने परिवार सहित व अपनी विभूति सहित बड़े उत्साहसे भागये । इन्द्रादिदेवोंने स्वामीको तीन प्रदक्षिणा देकर नमस्कार किया जय जय शब्दोंका उच्चारण किया, तथा बड़े हर्षसे प्रभुकी भक्तिपूर्वक अष्टद्रव्यले पूजा की । इन्द्रोंने अनुपम गद्य पद्य गर्मित स्तुति पढ़ी। उस स्तुतिमें यह कहा-प्रचण्ड कामदेवके दर्परूपी सर्पको नाश करने के लिये आप गरुड़ हैं, आपकी जय हो। केवलज्ञान सूर्य से तीन लोकको प्रकाश करनेवाले प्रभुकी जय हो। इसप्रकार अतिम केवली जिनवरकी अनेक प्रकारके स्तोत्रोंसे -स्तुति करके अपनेको कतार्थ मानते हुए देवादि सब अपनेर स्थानपर गये। १९..
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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