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________________ लम्बूस्वामी चरित्र ऐसे समयमें एक कुकलास (किरला) भूखी होकर अपने विलसे निककी। वह घूमती थी। उसने एक काले भयानक दंदशक सर्पको देखा। ऐसे भयानक कालस्वरूप सर्पको देखकर वह भयसे चिंतातुर हो भागी और नदीमें एक नकुलके विलमें चली गई । वह सर्प भी उसीके पीछे पीछे उसी विलमें घुस गया। वहां सर्पने उसको तो छोड़ दिया। और विलके भीतर बहुत उसका कुटुम्ब मिलेगा उसको पाडूंगा इस आशासे चला गया। नकुलोंने सर्पको देखकर क्षुधासे आतुर हो उसे मारडाका और खा लिया। जैसे उस सर्पकी दशा हुई वैसे हमारे स्वामी विवेक रहित हैं नो सामने पड़ी लक्ष्मीको छोड़कर भागेकी भाशा करके पथभ्रष्ट हो रहे हैं। रूपश्रीकी कथा सुनकर जम्बूकुमार उसे समझानेके लिये एक सुंदर कथा कहने लगे जम्बूकुमारकी कथा। इस पृथ्विीपर एक शृगाल था। रातको वह नगरके भीतर गया, वहां एक बूढे बैलको मरा हुभा देखकर प्रसन्न होगया कि मब मेरे मनका मनोरथ सिद्ध होगा, वह शृगाल उस बैलके हाइपिंजरके भीतर घुस गया। मांसको खाते खाते तृप्त नहीं हुमा। इतने में रात चली गई। सबेरा होगया तब नगरके लोगोंने उस शृगालको देख लिया, वह उस अस्थिके पंजरसे निकलकर भाग न सका, चित्तमें व्याकुल होगया कि माज मेरा मरण अवश्य होगा। इतने में किसी नागरिकने शृगालक दोनों कान व उसकी पूंछ किसी औषधि बनानेके १६००
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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