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________________ जम्बूस्वामी चरित्र मनका सर्व हाल जैसाका तैसा कह दिया । हे माता ! मैं अवश्य इस संसारसे वैराग्यवान हुमा ई, भब तो मैं अपनी हथेली में रक्खा हुभा ही माहार ग्रहण करूंगा। इस वार्तालापको सुनकर सती जिनमती कांपने लगी जैसे मानो पवनका झोका लगा हो। फलैसे कमलिनी मुरझा जाती है इसतरह जिनमती उदास होगई। कहने लगी हे पुत्र ! ऐसे वज्रपातके समान कठोर वचन क्यों कहे ? इस कार्यके होनेमें अकस्मात क्या कारण हुमा है सो कह । तब कुमारने समाधान करते हुए जो कुछ सुधर्माचार्य ने वर्णन किया था सो सब कह दिया। जंबूकुमारके पूर्वजन्मकी वार्ता सुनकर जिनमतीके भीतर धर्मबुद्धि उत्पन्न हुई । चित्तको समाधान करके उसने सेठ मरहदासके मागे सर्व वृत्तान्त कह दिया कि यह चरमशरीरी कुमार है यह नैन दीक्षाको लेना चाहता है। अबंदास इस वचनको सुनते ही मूर्छित होगया, महा मोहका उदय भागया, हाहाकार शब्द रटने कगा। किन्हीं उपायोंमे सेठजीने मुर्छा छोड़ी, फिर उठकर इसतरह भाकुल हो विलाप करने लगा कि उसका कथन कौन कवि कर सक्ता है। फिर समाधान-चित्त होकर अर्हदासने एक चतुर दूतको भेजा कि वह यह सब बात समुद्रदत्त आदि सेठोंको कहे । वह दत शीघ्र ही पहुंचा और चारों सेठोंको एकत्र कर विवाहका निषेधक निवेदन किया। अंतमें कहा कि भापक समान सज्जनोंका समागम बडे भाग्यसे मिला था सो हमारा दुर्भाग्य है कि मकस्मात् विन्न मा खंडा हुआ। १४१
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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