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________________ श्री जैन नाटकीय रामायण । - (कैलाश पर्वत को खोदता है। उसके अन्दर घुस कर पर्वत को उठाता है। सारी प्रथ्वी पर . भूकम्प आजाता है।) 'पाली--मालूम होता है. यह सब रावण का कर्तव्य है। मुझे अपनी कोई चिन्ता नहीं । चिन्ता इन जिन चैत्यालयों की है पर्वत को हानि पहुंचने से इन्हें हानि पहुंचेगी। (पैर के अंगूठे को दबाते हैं । गवण पर्वत के नीचे दब जाता है। बिल्कुल कछुवा बन कर हा हा कार करता है । देव मुनि के ऊपर फूलवर्षाते हैं। रावण की रानी बाली से प्रार्थना करती है। रानी-छोड़िये छोड़िये भगवन ! आप परम कृपालू हैं । पति के मरण से मैं विधवा कहलाऊंगी । दया कीजिये । (बाली पैर के अंगूठे को ढीला छोड़ते हैं। रावण बाहर निकल कर आता है।) रावण-क्षमा, क्षमा भगवान क्षमा, मैंने जो यह घोर अपराध किया इसके लिये मुझे क्षमा कीजिये । आप परम तपस्वी हैं 'आपने जो यह व्रत धारण किया था कि मैं सिवाय देव शास्त्र और गुरु के किसी को नमस्कार नहीं करूंगा' सो वह श्रापका ' व्रत अटल है। आपका नाम भी बाली है और आपके गुण भी बली हैं। मेरी मूर्खता थी कि मैंने आपके सच्चे स्वरूप को न
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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