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________________ जम्बूस्वामी चरित्र उसका आचरण सर्व बिगड़ गया। जगतमें प्रसिद्ध है, एक जूएके व्यसन में फंसकर युधिष्ठिर आदि पांडुपुत्रोंने दुःखोंको भोगा, परन्तु जो कोई इन सर्वे ही वह इस लोक में नाज व कल अवश्य दुःख भोगेगा व परलोक में भी पापके फलसे दुःख सहन करेगा । कहा है:-- अहो प्रसिद्धिलोकेऽस्मिन् द्यूताद्धर्मसुतादयः । राज्यभ्रष्ट होकर महान व्यसनोंमें लोलुप होगा एकस्माद्वयसनान्नष्टाः प्राप्ता दुःखपरम्पराम् || ६६ ॥ अयं सर्वैः समयैस्तु व्यसनैर्लोलमानसः । अद्य श्वो वा परश्वश्च ध्रुवं दुःखे पतिष्यति ॥ ६७ ॥ इस तरह नगर के लोग परस्पर बातें करते थे । उसके जातिवाले उसको शिक्षा देनेके लिये दुर्वचन भी कहते थे । इमतरह एक दिन जुआ खेलते२ जिनदास इतना सुवर्ण हार गया जितना उसके घर में भी नहीं था। तब जीतनेवाले जुआरीने जिनदासको पकड़कर कहा कि शीघ्र मुझे जितना तूने द्रव्य हारा है, दे । जिनदास तीव्र धनकी हारसे माकुलित हो विना विचार किये हुए कठोर वचनोंसे उत्तर देने लगा - तू चाहे जो वध बन्धन आदि करे, मेरे पास आज इतना सुवर्ण देने को नहीं है । मैं अपने प्राणोंका अंत होनेपर भी नहीं दूंगा। जिनदासके वचन सुनकर वह क्षत्रप जुआरी कोष भर गया । कहने लगा कि मैं माज ही सर्व सुवर्ण लूंगा, नहीं तो तेरे प्राण लूंगा । तू ठीक समझ - दूसरी गति नहीं होती । परस्पर कड़ाई झगड़ा होने लगा । बड़ा भारी कोलाहल होगया । ८७
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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