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________________ (५४) श्री जैन नाटकीय रामायण । हमारा प्रेम आपके प्रती आपके पिता से भी अधिक है। आप हमें अपनी बहिन श्रीप्रभा ब्याहो, और निमस्कार करो जिससे परम्परा से चली, भाई, मित्रता निभती चली जाय । " बांझी-तुमने जो कहा सो मैंने सुना । मैं और सब बातें स्वीकार करता हूं किन्दु मेरी यह प्रतिज्ञा है कि सिवाय देव शास्त्र और गुरु के किसी को मस्तक नहीं. नवाऊंगा मैं तुम्हारे साथ बँकापुरी को चल सकता हूं अपनी बहन श्रीप्रभा का विवाह रावण से कर सकता हूं। किन्तु प्राण जाने पर भी अपनी प्रतिज्ञा नहीं तोड़ सकता। दूत-हे बानर वंश में श्रेष्ठ, · तुम रावण के वचनों का पालन करो । राज्य पाकर गर्व न करो । या तो दोनों हाथ जोड़ कर प्रणाम करो या आयुध पकड़ा । या तो रावण को शीष नवाओ या बँचकर धनुष चढ़ाओ । या तो रावण को आज्ञा को कर्ण आभूषण करो नहीं तो धनुष का पिनच बैंचकर कानों तक लाओ, या तो रावण के चरणों के नखों में मुख देखो । या खडग रूपी दर्पण में मुंह देखो। अर्थात या तो जाकर उन्हें शीस नवाओ, या युद्ध के लिये तैयार होजाओ.। . . . . . . , - योद्धा 'अरे दुष्ट दृत क्यों ऐसे कठोर वचन स्वामी के 'लिये बोलता है। मालूम होता है तेरी मृत्यु निकट है । ले मरने को तैयार होजा । . . . . . .
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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