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________________ जम्बूस्वामी चरित्र कहते हैं। संसारसे छूटकर मोक्ष होनेपर भी सवा जीता रहता है, तब इसको सिद्ध कहते हैं। जीवके तीन भेद भी कहे जाते हैंभव्य, भभव्य और सिद्ध । जिनके सुवर्ण घातु पाषाणके समान सिद्ध होनेकी शक्ति है, उनको भव्य कहते हैं। मन्य पाषाणके समान जिनमें सिद्ध होनेकी शक्ति नहीं है उनको मभव्य कहते हैं। मभव्योंको कभी भी मोक्षके कारणरूप सामग्रीका लाभ नहीं होगा। जो धर्मबन्धसे मुक्त होकर तीन लोकके शिखर पर विराजमान होते हैं और जो अनंत सुखके भोक्ता हैं वे कौके मंजनसे रहित निरंजन सिद्ध हैं। इस तरह नीवतत्वका संक्षेरसे कथन किया गया। भव अजीव पदार्थको कहता हूं, सुनो अजीव तत्व। जिम जीव तत्व न हो उसको अजीव कहते हैं। इसके पांच भेद हैं-धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, बाक्षाशद्रव्य, कालद्रव्य और पुद्गलद्रव्य । जो द्रव्य अमूर्तीक लोकव्यापी है व जो जीव और पुद्गलके गमनमें उदासीन निमित्त कारण है वह धर्म द्रव्य है, यह गमनमें प्रेरणा नहीं करता है । जैसे मछली के इच्छापूर्वक रानमें जल सहायक है, जक मछलीको प्रेरणा नहीं करता है, इसी तरबका लोकव्यापी ममूर्तीक अधर्म द्रव्य है जो जीव और पुदलोंके ठहरने में उदासीन निमित्त कारण है । जैसे वृक्षकी छाया पथिकको ठहराने में निमित्त कारण है-प्रेरक नहीं है, इसी तरह मधर्म भी प्रेरक नहीं है। माकाश द्रव्य, अनंत व्यापी, ममूर्तीक, हलन चलन क्रिया रहित,
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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