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________________ जम्बूस्वामी चरित्र करा रहा है । आपकी दिव्यध्वनि जगतके प्राणियोंके मनको पवित्र करती है। आपका ज्ञान सूर्यका प्रकाश मोहरूपी अंधकारको दूर कर रहा है। 1 आपका ज्ञान अनंत है, अनुपम है व क्रमरहित है । आपका सम्यग्दर्शन क्षायिक है, सर्व विश्वको जानते हुए भी आपको किंचित् खेद नहीं होता है । यह आपके अनंत वीर्यकी महिमा है । आपके भावोंमें रागादिकी बलुपता नहीं है। आप क्षायिक चारित्र से शोभित हैं । आपके पास स्वाधीन मात्मासे उत्पन्न अतीन्द्रिय पूर्ण सुख है । जैसे निर्मल जल शीतल व मलसे रहित भासता है वैसे आपका सम्यग्दर्शन मिथ्यादर्शनकी कीचसे रहित शुद्ध भासता है। अनंत दान भोगोपभोग कब्धियां आपके पास हैं, परन्तु उनसे कोई प्रयोजन आपको नहीं है, क्योंकि आप कृतकृत्य हैं, बाहरी सर्व विभूतिका सम्बन्ध आपके लिये निरर्थक है । आप तो अनंत गुणोंके स्वामी हैं । मुझ अल्पबुद्धिने कुछ गुणोंसे आपकी स्तुति की है । इसप्रकार परमैश्वर्य सहित श्री भगवान जिनेन्द्रकी स्तुति करके राजा श्रेणिक अपने मनुष्यों के बैठने के कोठे में गया और वहां बैठ गया । इस जम्बुद्वीप के भरतक्षेत्र में मगधदेश विरुपात है । उसमें श्री राजगृह नगरी राजधानी है। उसका राजा महाराज श्रेणिक श्री विपुकाचल पर्वत पर विराजित श्री वर्द्धमान भगवान के समवसरण में जाकर भक्तिपूर्वक तिष्ठा है । ३२
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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