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________________ जम्बूस्वामी चरित्र % 3D घटती जाती है, धर्मका भी कही२ ममाव होजाता है। इस कालमें उपशम तथा क्षयोपशम दो ही सम्यक्त बाधा रहित होसकते हैं। देवलियों के न होने से क्षायिक सम्यक्त नहीं होसकता है। एक अन्य ग्रंथकी गाथामें कहा है कि पहले कालमें उपशम सम्यक्त ही होती है और सर्व कालों में पहला उपशम व दमग क्षयोपशम सन्यक्त दो होते हैं। क्षायिक सम्यक्त त्वही होता है जो श्री जिनेन्द्र केवली होते हैं। यहां कुछ श्लोक उपयोगी है: ततः श्रेण्योरभावः स्यात्नमन पर्ययबोधयोः । देशावधि विना परमसाधबोधयोः ।। १४५ ।। ऋद्रीणां चापि स मामभावस्तपसः क्षः। नापि देवागमम्तत्र कल्याणामनाभावतः ।। १४३ ॥ कदाचित कुत्रचित् केचिव क्षुद्रदेवाः कथंचन । आगच्छंत पुनस्तत्र सदभिः प्रोक्तं जिनागमे ।। १४४ ॥ गाथा-पढप पढमे णियदं पढमं विदियं च सबकालेसु । खाइयसम्मत्तो पुण जत्थ जिणो कैवली तम्हि ॥१॥ इस दुखमा पंचमकाकमें महावत और अणुव्रत दोनोंका पालन होसकता है, पान्तु अप्रमत्तविरत सातवें गुणस्थानके ऊपर गमन नहीं होसकता है। जो कोई भद्र परिणामी हैं व दया धर्म व दान में तत्पर रहते हैं, शील तथा उपवास पालते हैं, वे निरंतर स्वर्ग भी जाते हैं । इत्यादि कार्य जिस कालमें होते हैं वह दुखमा काल है ऐसा माप्तका उपदेश है।
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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