SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 203
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जम्बूस्वामी चरित्र त्रिदंडी होते हैं । कोई हंस व कोई परमहंस होते हैं जो वनमें निवास करते हैं । इस कालमें इतने साधुभोंके भेष प्रचलित होजाते हैं कि उनका नाम मात्र भी कहा नहीं जासक्ता । इस कालमें राजालोग भी पापमें रत दिखलाई पड़ते हैं। रोग पीडित साधु पाए जाते हैं। ऐसा होनेपर भी परमार्थको पहचाननेवाले महात्मा ओंका कर्तव्य है कि वे क्षण मात्र भी इस जैन धर्मको न भूलें। जैसे सुवर्ण भमिसे तपाए जानेपर भी भपने स्वभावको नहीं छोडता है किंतु और भी निर्मल होजाता है वैसे ही सज्जन पुरुषोंका कर्तव्य है कि क्षुद्र पुरुषोंमे पीडित होनेपर भी वे कभी धर्मको न त्यागें । कहा है कि इस लोक में भने जीव अपने २ बांधे हुए मौके वश ना । म.वोंको रखने वाले हैं, उनके कुत्सित मावों को देखते हुए भी योगियों का मन क्षोमित नहीं होता है। वे समभावसे सत्य वस्तु स्वरूपको विचार कर अपना हित करते हैं। इसतरह चौथे कालकी कुछ विधि कही है। अधिक वर्णन परमागमसे जानना योग्य है। जब चौथे कालमें तीन वर्ष मादेमाठ मास शेष रहे थे तब श्री वीर भगवानने निर्वाण प्राप्त कर लिया। उसके पीछे बासठवर्ष तीन केवलज्ञानी मोक्ष पधारे-श्री गौतमस्वामी, सुधर्माचार्य और जम्बुस्वामी। पञ्चमकाल वर्णन। तीन केवली के पीछे सौ वर्षमें चौदह पूर्वोके पारगामी पांच श्रुतकेवली क्रमसे हुए-विष्णु, नंदिमित्र, अपराजित, गोवर्द्धन और भद्रबाह । उपके पीछे एकसौ मस्सी वर्ष में क्रमसे दश पूर्वके शासा
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy