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________________ विहार हुमा है व जंबुस्वामीके पदसेवी विद्युच्चर मुनिका मागमन हुआ है । इनके साथ बहुतसे और मुनि थे। यहीं पर महामोहको जीतनेवाले, भखंड व्रतके पालनेवाले विद्युच्चरादि साधुओंने संन्यास लिया था, वे भिन्नर स्वर्गादिमें गर हैं। शास्त्रज्ञाता विद्वानोंने जंबु. स्वामीके व विद्युच्चाके स्थानों के पास माये साधुओंके स्थान स्थापित किये थे। कहीं पांच कहीं भाठ कहीं दश कहीं बीस स्तुर बने हुए थे। काल बहुत होजानेसे व द्रव्यके जीर्ण स्वभावसे ये सब स्तूप जीर्ण होगये थे। इनको जीर्ण देख कर साधु टोडरने जीर्णोद्धार करानेका उत्साह किया । इम बुद्धिमानने धर्मकार्य करने का मनमें दृढ़ विचार किया । साधु टोडरकी धर्म व धर्म फरमें भास्तिक्य बुद्धिथी। उसको श्रद्धान था कि भात्मा है, वह अनादिसे कर्मोसे बंधा है, कौके क्षयसे मोक्ष पता है तब सर्व क्लेश मिट जाते हैं व अनंत सुखकी प्राति होती है। जब तक इस अभूतपूर्व व कठिन मोक्षका लाम नहीं तबतक वुद्धिमानोंको अवश्य धर्मकार्य करते रहना चाहिये । मोक्ष तो महात्मामोंको तब ही सुखसे साध्य होता है जब काललब्धि मादि मोक्षकी सामग्री प्राप्त होती है। यह मोक्ष भी भव्योंको होगा जिनको सम्यककी प्राप्ति हो जायगी। परन्तु मभव्योंको मोक्ष कभी नहीं होता है, न हुमा है न होगा। वे नमव्य नित्य आत्मसुखको न पाकर दुःखी रहेंगे तथापि जो अमव्य क्रिया मात्रमें रागी होकर धर्मसाधन करेंगे वे पुण्यके फलसे महान् भोगोंको पाएंगे। वे ग्रेवेयिक तकके सुख पा सक्ते हैं परन्तु स्वर्गादिसे भाकर वे बिचारे तिर्यंच मनुष्यादि गतियोंमें तीन दुःख उठाते हुए भव भ्रमण किया करते हैं। उस सम्यग्दर्शन 'धर्मको सदा नमस्कार हो
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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