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________________ पंचम भाग (३५५) या न करें । मैं सती हूँ मैंने आपके सिवाय पापुरुष को आंख उठा कर भी बुरी निगाह से नहीं देखा । श्राप चाहे जैसी परिक्षा लें मैं तैय्यार हूँ। मैं स्वामी श्रापकी हूं, आपको अधिकार मुझ पर है । कोई कुछ भी करे अधिकार मुझको अपने मन पर है ।। यदि चाहो तो पर्वत से गिरा कर चूर कर डालो । यदि चाहो तो अग्नी में जला कर भस्म कर डालो ॥ वचन मन काय से मैंने, घरम अपना रेखा होगा। पटकदो मुझको अग्नी में, मेरे छूने से जल होगा । राम---यदि यही बात है तो कल तुम्हारी अग्नी परिक्षा होगी । सेनापती ! जाओ एक लम्बा चौड़ा और गहरा अग्नी कुन्ड तैय्यार कराओ। उसमें चन्दन की आग जलाओ । सारे नगर में इस बातका ढिंढोरा पीटो कि कल सीता की अग्नी परिक्षा होगी। नारद-रामचन्द्र । ऐसा न करो | अग्नी प्रचन्ड रूप होती है वो सीता को अवश्य जला देगी | तुम उसमें सीता का प्रवेश न कराओ। यदि सीता को स्वीकार नहीं करना चाहते तो न करो । किन्तु ये हिंसा का कार्य न करो। रामचन्द्र-नारदजी ! मैं आपके वाक्यों का सम्मान करता हूं किन्तु जो एक बार मेरी आज्ञा हो गई वो नहीं टल सकती। जिस प्रकार अग्नी में सोना लपाने से सोने और सुनार दोनों का
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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