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________________ पधेम भाग। (३३७) लवण-मामा जी ! मैंने सुना हैं कि राजा पृथुमती ने श्रापकी आज्ञा भंग की हैं । मैं उसका मान भंग करूंगा ) ____ वजूंजघ--- पुत्र ! तुम युद्ध में न चलो । उसके लिये मैं काफी हूं। मेरे लड़के मेरे साथ चल रहे हैं तुम्हारी कोई प्रावश्यकता नहीं । तुम दोनों माता के पास रह कर उसके नेत्रों को शान्ती दो। अंकुश-मामाजी ? भाप हमें युद्ध से न रोकिये । हम क्षत्री हैं हमें युद्ध में आनन्द प्राप्त होता है। वज्रजंघ-यदि तुम्हारी उत्सुकता इतनी बढ़ी हुई है तो चलो । युद्ध में अपनी परिक्षा दो। (सब चले जाते हैं) पर्दा गिरता है। अँक द्वितीय-दृश्य तृतीय (वजूध और पृथुमती आते है) वज्रजंघ--बोल ओ अभिमानी राजा बोल, तु अपनी कन्या मदनांकुश को व्याहता है या युद्ध में प्राण गंवाता है। सोच ले समझ ले वरना पीछे पछतायेगा मेरी आज्ञा भंग करने का फल पायगा। पृथुमती-सब समझ लिया । तेरे जैसे कन्या को मांगने वाले मैंने बहुत देखे हैं । जा भाग जा वरना मेरे धनुष बाण के
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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