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________________ पंचम भाग। ( ३२५) (द्वारपाल से) द्वारपाल ! जाओ सेनापति को बुलालाओ ! द्वारपाल-जो आज्ञा ! (चला जाता है। सेनापति आता है।) सेनापति-श्री महाराजा रामचन्द्रजी तथा लक्ष्मणजी के चरणों में सेवक का प्रणाम । सेवक श्राज्ञा पालन करने को उपस्थित है। राम-सेनापती ! जाओ सीता को रथ में बिठाकर ले जाओ उसे पहले सारे तीर्थों की बन्दना कराओ, पश्चात सिंहनादबन में अकेली छोड़ पाना । जैसा मैंने कहा उसी प्रकार मेरी आज्ञा का पालन करना । नहीं तो दण्ड पाओगे । सेनापति-जो श्राज्ञा । ( चला जाता है) पर्दा गिरता है সঁন্ধ সৃথষয় লতা (राजा वनजंघ अपने सैनिकों सहित आता है।) वज्रजध-मेरे बहादुर सैनिकों ! हमें यहां पाये हुवे भाज १ माह बीत गया । ओह, यह सिंहनाद बन कैसा भयानक है यहां पर मनुष्य नहीं आ सकता। हम लोगों ने कितने कष्ट सहते हुवे हाथियों को पकड़ा । अब कुछ ठहरकर फिर नगरको वापिस लौटना चाहिये।
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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