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________________ चतुर्थ भाग विभीषण- देखो ! देखो ! वे सामने से सिपाही लोग तुम्हें ही पकड़ने या रहे हैं । तुम भाग जाओ । ( २७७ ) हनूमान - श्राप भाग जाइये वरना थापको मेरे साथ खड़े हुने सुन कर रावण आप पर नाराज होगा । मुझे रावण से मिलने का यह अच्छा मौका है । ( विभीषण चला जाता है । सेना आनी है । हनूमान उन्हें मार कर भगा देता है | ) हनुमान - थोड़ा कौतूहल अवश्य दिखाना चाहिये । ( चला जाता है | ) बँक द्वितीय - दृश्य छठा ( रावण का दर्बार | मेघवाहन इन्द्रजीत, कुम्भकर्ण, विभीषण और दो मन्त्री वैठे हैं । दूत आता है । ) दूत - महाराजाधिराज की जय हो । उस हनुमान ने लंका में घोर उपद्रव मचा रखा है । बड़े बड़े रत्नोंके महलों को अपनी जंघा से चूर्ण कर रहा है । जलाशय तोड़ दिये हैं सारी सड़कों पर कीचड़ हो रही है, तमाम मकानों को ढा रहा है, नगर के लोग त्राही मचा रहे हैं । दुहाई है महाराज की । रावण -- मेरे टुकड़ों का पला हुआ हनूमान और मेरे ही नगर पर उपद्रव | मेघवाहन जाओ जिस प्रकार हो सके जीता या
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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