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________________ श्री जैननाटकीय रामायण राम-वाह, मैं किस प्रकार तुम्हारे गान की प्रशंसा करूं तुम साक्षात इन्द्राणी की अवतार हो । सीता--नाथ श्राप क्यों मुझे बड़ाई दे कर लज्जित करते हैं। राम-सीते ? देखो ये नर्मदा कैसी बह रही है । इसकी घाल तुम्हारी चाल से मिलती है । इसकी सुन्दरता तुम्हारे आगे फीकी है। सीता-किन्तु इसका जल अापके मन समान निर्मल नहीं है। बस यही एक कमी है। 'राम-सीता ! क्या कारण है । अभी तक लक्ष्मण नहीं पाया । सीता-देखो वह सामने खड़ग लिये चले आरहे हैं। राम-मालूम होता है इसने कोई अद्भुत वस्तु प्राप्त की है । यह बहुत हर्षित है। __ लक्ष्मण-(भाकर ) भाई साहब देखिये मैं इस बन में से ये खड़ग लाया हूं। राम----यह तुमने कहां प्राप्त किया ? लक्ष्मण-यहां से थोड़ी दूर पर एक स्थान पर कोई विद्याधर इसे साध रहा था । बह बांसों के बीडे पै बैठा हुआ था। मैंने इसकी ज्योति औ सुगन्धता देख कर इसे सूर्यहास है
SR No.010505
Book TitleJain Natakiya Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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