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________________ ( ३२ ) सिद्ध है. तिसने सर्व ब्राह्मणोंसें सर्वश्रुतिओं एका करके, तिनके चार भाग बनाये. तिनमें प्रथम भाग का नाम “ऋग्वेद" रख्खा, और अपने पैलनामा शिष्यकों दीना. दूसरे भागका नाम “यजुर्वेद" रख्खा और अपने वैश्यंपायननामा शिष्यकों दीनाः तीसरे भागका नाम “सामवेद" रख्खा, सो अपने जैमनिनामा शिष्यकों दीना. और चौथे भागका नाम “अथर्ववेद", रख्खा सो अपने समंतुनामा शिष्यकों दीना.यहांसें ऋग्वेदादिचारों वेद प्रचलित हुए. यह कथन यजुर्वेद भाष्यानुसार प्राय है।। व्यासजीने ब्रह्मसूत्र रचे, तिनसें वेदांत मतका मुख्य आचार्य व्यासजी हूआ. “ यह वेदांत मत हमारी कल्प ना मुजिब, जैन, और सांख्य मतकी छायासें, तथा जैन मतकी प्रबलतामें बनाया सिद्ध होता है. कयों कि, तिनमें (वेदांतमें) वेदोक्त हिंसक यज्ञकी निंदा लिखी है. तथा लोकोंमें जो यह कहावत चलतीहै, कि जैन मत थोडेही दिनोंसें प्रचलित हूआ है, सोभी लोकोकी कहावत इसवेद व्यासके बनाये ब्रह्मसूत्रसे जूही हो गइ है. क्यों कि, वेद व्यासने अपने रचे ब्रह्मसूत्र के दूसरे अध्याय के दूसरे पादके तेतीसमे
SR No.010504
Book TitleJain Mat Vruksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1900
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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