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________________ ( २२ ) इस वास्ते हे मातः ! तुं मुझे सर्व वृत्तांत कहदे. तब ब्राह्मणीने अपणे पुत्रका अज व्याख्यान, और जीव्हा च्छेदकी प्रतिज्ञा कह सुनाई, और कहाकि, जो तैनें अपने भाइकी रक्षा करनीहो ? तो अजा शब्दका अर्थ मेष अर्थात् बकरी बकरा करना. क्योंकि, महात्मा जन परोपकारके वास्ते अपने प्राणभी दे देते हैं, तो वचनसें परोपकार करने में तो क्याही कहना है ? तब वसुराजाने कहा कि, हे मातः ! मैं मिथ्या वचन, क्योंकर बोलुं ? क्योंकि, सत्य बोलने वाले पुरुष, जे कर अपणे प्राणभी जातें देखे, तोभी असत्य नही बोलते है तो फेर गुरुका वचन अन्यथा करणा, और जूठी साक्षी देणी, इसका तो क्याही कहणा है ? तब ब्राह्मणी ने कहा कि, या तो गुरुके पुत्रकी जान बचेंगी, या तेरा सत्य व्रतका आग्रहही रहेगा; और मैं भी तुजे अपने प्राणकी हत्या दऊंगी. तब वसुराजाने लाचार होकर ब्राह्मणीका वचन माना. पीछे क्षीरकवककी भार्या प्रमुदित होकर अपने घरकों चली गई. इतनेंही में मैं, (नारद), और पर्वत दोनों जने वसुराजाकी सभामें गये. वहां सभामें बडे बडे विद्वान् एकिट्टे मिले, और वसुराजा, सभाके विचमें 7
SR No.010504
Book TitleJain Mat Vruksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1900
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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