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________________ श्री जैनहितोपदेश भाग २ जो. खरा हिंमतवान पुरुषो आपत्तिने संपत्तिरुप देखीने मुखे उल्लं.घी जाय छे. पण पुरुषार्थ हीन जनो तो प्राप्त संपचिनो पण सदुप, योग करी शकता नथी. एटलुंज नहि पण उलटो तेनो दुरुपयोग करीने दुःखी थाय छे. जेम राधावेध साधनार माणसने राधावेध साधता बारीक उपयोग राखवो पडे है, वेम दरेक मुमुक्षु जनने पण अवश्य राखवानो छे. ___ सम्यग् ज्ञान, सम्यग् दर्शन (श्रद्धा) अने सम्यग् वर्तन-सदाचरण (ए रत्नत्रय) आ संसारसायर तरीने पार पामवानो अकसीर उपाय छे. जन्ममरणजन्य अनंत दुःख जळथी आ संसार समुद्र भरेला छे. छतां तीर्थकर जेचा निपुण नियोमकनी सहायथी तेनो सुखे पार 'पामी शकाय छे. ____ दृढ संकल्पथी संसार सागरनो पार पामवानी पवित्र बुद्धिर्थी सर्वज्ञ वचनानुसारे सदुद्यम सेवनार सत्पुरुष जरुर संसारनो पार 'पामे छे. उत्तम प्रकारनी क्षमा, सरलता, नम्रता, निर्लोभता, उपरांत 'तप, संयम, सत्य, शौच, निर्ममता अने ब्रह्मचर्य रुप दशविध यति'धर्मनुं यथार्थ सेवन करनार शीघ्र मोक्ष सुख साधी शके छे. शुद्ध
SR No.010503
Book TitleJain Hitopadesh Part 2 and 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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