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________________ श्री जैनहितोपदेश भाग २ जो. अने अन्य देनारनी अनुमोदना करे छे तेमनुं तो कहेधुंज शुं ? तेतो तेमना पवित्र आशयथी अक्षय सुखनाज अधिकारी थाय छे. तेथी शास्त्रकारे योग्यज कहुं छे के हे भव्यो! तमे अनेक गुणनिधान स्वर्ग मोक्षदायक सकल सुखकारक, पाप ओघ निवारक, स्वपर हितदायी, अने सर्व संतोषकारी एवं अक्षय सुखहेतुक दान निग्रंथ मुनियोने सदा आपो. २५ जरुर जणाय त्यांज जिनालय जयणाथी कराव. कोइक भाग्यशाली भव्यनुज द्रव्य जयणाथी जिनालयमां वपराय छे. नईं जिनालय करवा करतां जूनुं समराववामां सामान्य रीते आठ गुणुं फळ शास्त्रकारो कहे छे. शुद्ध समजथी तो ते करतां अनंतगणुं फळ मळे छे.. न्यायोपार्जित न्यवाळो, उदार आशय, मोटी लागवगवाळो, शास्त्र नीति प्रमाणे चालनारो, भवभीरु श्रावकज जिनालय कराववानो अधिकारी छे. केमकें तेज तेने जयणा पूर्वक निर्विघ्ने करावी साचवी शके छे.
SR No.010503
Book TitleJain Hitopadesh Part 2 and 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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