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________________ १५२ श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो. इंद्रियोठे वळ घटी न जाय, त्यां सुधीमा स्वस्वशक्ति अने योग्यता सुजब पवित्र धर्यतुं सेवन करवं युक्त छे, सद् उद्यमथी सकळ कायनी सिद्धि थाय छ; अने प्रमादाचरणथी सकळ कार्यने हानि प्होंचे छे. (?) HT ( Intuxication ) Feet (cvil propensities) कपाय ( Wrath ete.) निद्रा (Illencss ) अने विकथा-कपोल कथारुप पांच प्रकारना प्रमाद जीवोने दुरंत व्ययामां पाडे छे. (६२) जगतगुरु जिनेश्वर प्रभुना पवित्र वचननुं उल्लंघन करीने स्वच्छंद वर्त्तन चलावq एज प्रमादनुं व्यापक लक्षण छे. (६३) एवा प्रमादना जोरथी चौद पूर्वधर समान समर्थ पुरुषो 'पृणु सत्य चारित्र धर्मथी चलायमान थइ पतित थइ गया छे. तो बीजा अल्पज्ञ अने ओछा सामर्थ्यवाळाओगें तो कहेज शुं ? (६४) थोडं रुण थोडं व्रण (चांदु ) थोडो अग्नि अने थोडा कपायनो पण कदापि विश्वास करवो नहि. केमके ते सर्व थोडामांश्री वधीने मोटुं भयंकर रुप धारण करे छे. (६५) ज्यां सुधी क्रोधादि चारे कषायोनो सर्वथा क्षय थाय नहि, थोडो पण कपाय शेष रखो त्यां सुधी तेनो विश्वास करवा नहि. घोडा पण अवशिष्ट रहेला पायनी उपेक्षा करवाथी क्वचित्
SR No.010503
Book TitleJain Hitopadesh Part 2 and 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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