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________________ .. जैनहितोपदेश भाग ३ जो. नव ब्रह्मांगतो देवं, शुद्धमात्मानमर्चय ॥ २ ॥ क्षमा पुष्पस्रजं धर्म, युग्म क्षौमद्रयं तथा ॥ ध्यानाभरणसारं च, तदंगे विनिवेशय ।। ३ ।। मदस्थान भिदा त्यागै, लिखाग्रे चाष्ट मंगलीं ॥ ज्ञानामौ शुभ संकल्प, काकतुंडं च धूपय ॥ ४ ॥ प्राग् धर्म लवणोत्तारं, धर्मसंन्यास वन्हिना ॥ कूर्वन् पूरय सामर्थ्य, राजन्नी राजना विधि ॥ ५ ॥ स्फुरन् मंगलदीपं च, स्थापयानुभवं पुरः॥ योग नृत्य परस्तीय, त्रिक संयमवान् भव ॥ ६ ॥ उल्लसन्मनसः सत्य, घंटां वादयत स्तव ।। भाव पूजा रतस्येत्थं, करकोडे महोदयः ॥ ७॥ द्रव्य पूजोचिता भेदो, पालना गृहमेधिनां ॥ भाव पूजा तु साधूना, मभेदो पासनामिका ॥ ८॥
SR No.010503
Book TitleJain Hitopadesh Part 2 and 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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