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________________ __ २२ श्री जैनहितोपदेश भाग २ जो. इंद्रियरुपी दुर्धर चोरो जीवनां व्रतज्ञानादि गुण रत्नथी भरेला जगतारक भांडने क्षणवारमा स्खलना पमाडे छे. तेथी जे मुनीश्वरो संनद्ध थइने महाव्रतरुपी वाणो सावधानपणे ग्रही मर्यादामां रह्या छतां ध्यानरुप तीरथी तेमने मर्ममा हणे छे, तेओज मुखसमाधे, मोक्षपुरीमा जइ शके छे. ८ स्त्रीनो संग-परिचय तज. स्त्री केवळ काम विकारर्नु घर छे, एम समजी साधु जनोए तेनी संगति वारवी योग्य ज छे. भला भला पण साधु स्त्री संगतथी निशान चूकी गया छे. तेथी ब्रह्मचारीजनोए स्त्रीओना परिचयथी दूर रहेवू ज हितकारी छे. एम वर्तवाथी ज नवकोटि शुद्ध ब्रह्मचयंनी रक्षा थइ शके छे. दुनियामां गहनमा गहन स्त्री चरित्र ज छे. तेथी जेम वने तेम साधु पुरुषोए तेनाथी चेततां रहेवानी जरुर छे. जेवो मूषकने माजोरी तरफथी भय राखवानी जरुर छे. तेम ब्रह्मचारी साधुने पण स्त्री समुदाय तरफथी भय राखवानी जरुर पडे छे, स्त्रीजनोनो परिचय साधु जनोने हितकारी नथी ज ए निर्विवाद सिद्ध छे. अग्निथी लालचोळ थयेली लोहमय पूतली आलिंगन कर सारु पण नर्कना द्वारभूत नारीना नितंवर्नु सेवन कर सारं नीज..
SR No.010503
Book TitleJain Hitopadesh Part 2 and 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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