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________________ १४२ श्री जैनहितोपदेश भाग २ जो. हृदय चोख्खु-स्वच्छ थया बाद तेमा चारित्र गुणना आधारभूत सद् विवेक प्रगटे छे. आ सद् विवेकनुं वीजु नाम समकित या, तत्त्वश्रद्धा छे. हृदय-भूमि शुद्ध थया बादज तेमा चारित्र-महेलनो सद्विवेक या समकित रुपी पायो नंखाय छे. तेना विना चारित्रमहेल टकी शकतोज नथी. चारित्र०-उक्त रीते हृदय शुदि कर्यावाद जे सद्विवेक या संमकित पामq इष्ट छे तेनुं स्वरुप अने लक्षण जाणवानी मने अभिलाषा थइ छे, तेथी प्रथम संक्षेप मात्र तेनु स्वरुप अने लक्षण कथन करो. ' 'सुमति–'सदसद्विवेचनविवेकः' तत्त्वातत्त्वनी जेवडे यथार्थ समज पडे, गुण, दोष, हिताहित, कृत्याकृत्य, भक्ष्याभक्ष्य, अने पेयापेय विगैरेनी जेथी यथार्थ ओळखाण थाय, देव , गुरु अने धर्म संबंधी जेथी संपूर्ण निश्चय थाय, तेवो निर्णय-निर्धार कर्याबाद खोटी बाबतमां कदापि मुंझावाय नहि अने सत्य वस्तुनी खातर प्राण अर्पण करवा पण तैयार यवाय; आ उपरांत उपशम, संवेग, निर्वेद, अनुकंपा अने आस्तिकता ए पांच, समकितना खास लक्षण के 'ए लक्षणथी समकितनी खात्री थइ शके छे. ज्यांसुधी उपत्रमादिक लक्षण अंतरमा प्रगट थयेलां देखाय नहिं त्यांचंधी सद् विवेक या । समाकित प्रगट थयानी खात्री थइ-कती नथी तेयी पूर्वेला क्रमपी हृदय शुदि कयोंवाद सद् विवेक या समकित रंलना अयी जनार
SR No.010503
Book TitleJain Hitopadesh Part 2 and 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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