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________________ श्री जैनहितोपदेश भाग २ जोः अंध पण गुणने दोषज मानी ले छे.: विवेक शून्यपणे रागादिक करतां उलटुं विपरीत परिणामजं आवे छे, 'माटेज: ज्ञानी पुरुषोः परीक्षा पर्वकज सदगुणना रागी थवानं फरमावे छे. जेथी सकळ दोपने अनुक्रमे दूर करीने सद्गुण संपन्न थवाय छे. १३. सत्यवादी-जेने असत्य अहित अप्रिय भाषणः हलाहल . झेर जेवू लागे छे, अने सत्य हित अने प्रिय वचन अमृत जेवू मिष्ट लागे छे तेज परमार्थी सत्यवादी थइ शके छे. ते सत्यनी खातर प्राण पाथरशे. १४. सुपक्ष-जेनां सगां संबंधी निर्मळ बुद्धिनां, मायालु, धर्मशीळ अने टेकीलां होय तेमज बीजांने पण तेवांज थवा प्रेरणा करता होय ते मुपक्ष (समर्थ पक्ष-वळवाळो) होवाथी सर्व कार्यमां फतेहमंद नीवडे छे. १५. दीर्घदशी-कंइपण कार्य सहसा नहिं करतां तेनुं भावी परिणाम विचारीने विवेकथी करवा योग्य कार्य करे ते दीर्घदर्शी समयज्ञ कवाय छे. १६. विशेषज्ञ-जे खरं स्वहित शुं छे अने ते शी रीते साध्य थइ शके छे ए तथा गुणदोष, लाभालाभ हिताहित, द्रव्य, क्षेत्र, काळ, अने भावने सारी रीते समजीने वीजाने समजावी शके ते विशेषज्ञ गणाय छे..
SR No.010503
Book TitleJain Hitopadesh Part 2 and 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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