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________________ ( ८८ ) सती शिरोमणि द्रौपदी कहिये, जिन सम अवर न कोई। पांच पुरुषनी हुई ते नारी, पूर्व कर्म कमाई रे । प्राणी० ॥ १४ ॥ आभा नगरौ नो जे खामी, साचो गजा चन्द। मांई कौधो पक्षी कूकड़ो, कमी नोख्यो से फन्द रे । प्राणी० ॥१५॥ ईश्वर देव पार्वती नारी, कर्ता पुरुष कहावे । अहनिशि महल श्मशानमें बासो, भिषा भोजन खावेरे । प्राणी० ॥ १६ ॥ सहस्त्र किरण सूर्य परितापी, रात दिवस रहे अटतो। सोलह कला शशिधर जगचावो, दिन २ जाय घटतो रे। प्राणी ॥ १७॥ इमि अनेक खंड्या नर कर्मे, भाज्या ते पिण साजा। ऋषिहर्ष कर जोडिने विनवे, नमो नमो कर्मे महाराजा रे ॥ प्राणी० ॥१८॥ ॥ जीवा तू तो भोलो रे की ढाल ॥ मोह मिथ्यात्वकी नौंदमे, जीवा सोयो काल अनन्त । भव भव माहे तू भटकियो, जीवा ते साम्भल उत्तम्त । नौवा तू तो भोलो रे, प्रागौ इमि रुलियो संसार । नीवा० ॥ १ ॥ ऐसा कई अनन्त जिन हुपा, जीवा उत्कृष्ट जान भगाध । इस भवधी लेखो लियो, जीवा कौन बतावे घारी याद । जीवा० । २ । पृथ्वी
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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