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________________ चौदह महस्र साधु हुए. आर्वा कत्तीस हजार । लाखां श्रावक श्राविका, पाया भव नल पार ॥ ३ ॥ . चाल होर रांझेके ख्याल को। मेरी अदालत प्रभुजी काजिये, जिन शासन नायक सक्ति जागोजी डिग्रौ दीजिये। (जि. टेक) -खुद चेतन मुद्दई वना है, आठों वार्म मुद्दाइला। दावा गम्ता मुक्ति सागका, धोखा दे जाय टालाजी। जि. ॥ १॥ तप नागद स्टाम्प लिखाया, तलवाना क्षमा विचारौ। सिझाय ध्यान मजलून बनाकर, अर्जी मान गुनासैनी। जि० ॥ २ ॥ मैं जाता था मुक्ति मार्गमे, कर्मों ने प्राय घेरा। धोखा देकर गह भुलाया, लूट लिया सब डेराजी। जि० ॥ ३ ॥ बहुत खराव किया कर्मोने, चौरासीक मांहो। दुःख अनन्ता पाया मैंने, भन्त पार कछु माहौजी। जि० ॥ ४ ॥ सझे मिले वकील काननी, पंच महाव्रत धारी। सूत्र देख ससौदा कीन्हा, तब मैं अर्जी डारीजी। जि. ॥ ५ ॥ पांच सुमति तीन गुप्ति ये, पाठों गवाह बुलायो। शौल पसल है बड़ा चौधरी, उसको पूछ मंगायो नी । जि०६॥ अर्नो गुनरी चेतन तेरी, हुया सफौना जारी। हाजिर भायो जवाव लिखायो,
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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