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________________ चढिया ध्यान अत्यन्त भ. च० ।। पा० ॥५॥ नवः आदि संजलचिहुरे ॥ अंतसमे इक लोभ भ० अं० । दसमे सूचम मात्रतेरे ॥ सागार उपयोग शोभ भ० सा ॥ मा० ॥६॥ एकादशमो उलंघनैरे ॥ बारमें मोर खपाय ॥ भ. बा० ।। त्रिकर्म एक समै तोडतारे तेरी केवल पाय ॥ पा० ॥७॥ तीर्थ थाप योग सध नैरे । चउदमा थी शिवपाय भ० च०॥ उगोस पुनम भाद्र वेरे ॥ अनंत रय्या हरषाय भ० अ० ॥ पा० ॥८॥ ' ॥ो स्तवन नीचे लिखे मूजब चालमें भी गायो जावे है । अनंत नाम जिन चवदमां, जिनरायारे । द्रव्यध चोथे गुण स्थान, खाम सुखदायारे ॥ भावे जिन हुवै तेरमें, जिनरायारे ॥ इतले द्रव्य जिन जाण, खाम सुखदायारे॥१॥ धर्म जिन स्तवन । (भक्षुपटभारीमालभलक एदेशी) धर्म जिन धर्म तणा धोरी ।। त्रटक मोहपाश नाग्या तोड़ी॥ चरण धर्म आत्म स्यं जोड़ी पहो प्रभु धर्म देव प्यारा ॥१॥ शुक्ल ध्यान अमृत रस लीना ॥
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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